वायुसेना प्रमुख: जल, थल, नभ, साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्रों की पारंपरिक सीमाएं धुंधली हो रही हैं

वायुसेना प्रमुख: जल, थल, नभ, साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्रों की पारंपरिक सीमाएं धुंधली हो रही हैं

नयी दिल्ली। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी ने कहा है कि जल, थल, नभ, साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्रों की पारंपरिक सीमाएं तेजी से ‘‘धुंधली’’ होती जा रही हैं, जिससे युद्ध क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव आ रहा है। शुक्रवार को तीन दिवसीय भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रसारित एक रिकॉर्डेड वीडियो संबोधन में वायुसेना प्रमुख ने यह भी कहा कि ‘‘अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने’’ के लिए ऐसी क्षमताएं विकसित की जानी चाहिए जो ‘‘अंतरिक्ष में हमारे हितों की रक्षा’’ के लिए आवश्यक होंगी। अपने संबोधन में एयर चीफ मार्शल ने रेखांकित किया कि नयी प्रौद्योगिकियों की तेजी से हो रही वृद्धि और निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोलने के साथ चीजों की स्थापित योजना में बदलाव हो रहा है। 

उन्होंने कहा कि इससे नए समाधान मिलने के साथ कम लागत पर अन्वेषण के दरवाजे भी खुल रहे हैं। वायुसेना प्रमुख ने कहा कि हालांकि, इन नयी संभावनाओं के साथ ‘‘नए खतरे’’ भी सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी के साथ अंतरिक्ष का लोकतंत्रीकरण देख रहे हैं। नागरिकों की अंतरिक्ष यात्रा, जो 25 साल पहले एक सपना था, आज वास्तविकता है।’’ यहां मानेकशॉ सेंटर में 18 अप्रैल से 20 अप्रैल तक आयोजित संगोष्ठी में विषय विशेषज्ञ, सशस्त्र बलों के वरिष्ठ अधिकारी और अंतरिक्ष क्षेत्र उद्योग के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। 

वायुसेना प्रमुख ने कहा, ‘‘जल, थल, नभ, साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्र की पारंपरिक सीमाएं तेजी से धुंधली होती जा रही हैं, जिससे युद्ध क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव आ रहा है। मुझे लगता है कि अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए हमें ऐसी क्षमताएं विकसित करनी होंगी जो अंतरिक्ष में हमारे हितों की रक्षा करने के लिए आवश्यक है।’’ वायुसेना प्रमुख ने कहा कि अंतरिक्ष में ‘‘अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए’’ सशस्त्र बलों सहित सभी हितधारकों के बीच अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी और संवाद की आवश्यकता है। 

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति 2023 ‘‘सही दिशा’’ में है और यह निश्चित रूप से ‘‘आत्मनिर्भरता’’ को प्रोत्साहन देगी। एयर चीफ मार्शल चौधरी ने कहा, ‘‘हमें एक साथ काम करने और भारत में एक मजबूत, संपन्न और जीवंत अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता होगी।

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